सिद्धासन की विधि और 19 लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन को अंग्रेजी में Accomplished Pose कहा जाता है. सिद्धासन को लोग सुखपूर्वक स्थिरता से बैठने का आसन के नाम से जानते हैं। ये योग की एक पूर्ण मुद्रा है. सिद्धासन (Siddhasana) का नियमित रूप से अभ्यास शरीर और मन दोनों के लिए बहुत फायदेमंद होता है. योग गुरुओ के मुताबिक सिद्धासन मन और शरीर दोनों को शांत और स्वस्थ रखने का काम करता है. सिद्धासन की विधि और लाभ (Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh) को सपूर्ण तरीके से जानना बोहोत जरुरी हैं।

सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन क्या हैं?

पद्मासन के बाद सिद्धासन का स्थान आता है। अलौकिक सिद्धियाँ प्रदान करनेवाला होने के कारण इसका नाम सिद्धासन पड़ा है। सिद्ध योगियों का यह प्रिय आसन है। यमों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, नियमों में शौच श्रेष्ठ है, वैसे ही आसनों में सिद्धासन श्रेष्ठ है।

सिद्धासन सिद्ध और आसन दो शब्दों से मिलकर बना हुआ हैं. इस योग को करने से व्यक्ति सपूर्ण तरीके से सिद्ध हो जाता हैं। और साथ ही साथ व्यक्ति की चेतना जागृत हो जाती है. सिद्धासन करने से तनाव और अवसाद चुटकी में दूर होता हैं.

सिद्धासन को संपूर्ण मुद्रा या निपुण मुद्रा के नाम से भी जाना जाता हैं। मुद्रा का नाम दो अलग-अलग अर्थों से आता है: सिद्ध , जिसका अर्थ है पूर्ण या निपुण, और आसन , जिसका अर्थ है मुद्रा। सिद्धासन को करने से आपकी मुद्रा में सुधार होता हैं। इससे आपकी रीढ़ लंबी होती हैं. और आपके कूल्हे, छाती और कंधे खुल सकते हैं।

सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन करने से पहले आप अपने योगगुरु या विशेषज्ञ से संपूर्ण माहिती ले बाद में यह आसन को करें।

विधि

  • सिद्धासन करने से पहले आपको एक शांत जगह पर योग मैट रखकर ज्ञान मुद्रा में बैठ जाएं।
  • फिर आसन पर बैठकर दोनों पैर खुले छोड़ दें।
  • अब बायें पैर की एड़ी गुदा और जननेन्द्रिय के बीच रखें।
  • दाहिने पैर की एड़ी को जननेन्द्रिय के ऊपर इस प्रकार रखें जिससे जननेन्द्रिय और अण्डकोष के ऊपर दबाव न पड़े।
  • पैरों का क्रम बदल भी सकते हैं।
  • दोनों पैरों के तलुवे जंघा के मध्य भाग में रहें।
  • हथेली ऊपर की ओर रहे, इस प्रकार दोनों हाथ एक दूसरे के ऊपर गोद में रखें।
  • अथवा दोनों हाथों को दोनों घुटनों के ऊपर ज्ञानमुद्रा में रखें।
  • आँखें खुली अथवा बंद रखें।
  • श्वासोच्छ्वास आराम से स्वाभाविक चलने दें।
  • भ्रूमध्य में, आज्ञाचक्र में ध्यान केन्द्रित करें।
  • पाँच मिनट से लेकर तीन घण्टे तक इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं।
  • ध्यान की उच्च कक्षा आने पर शरीर पर से मन की पकड़ छूट जाती है।
सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन के लाभ

सिद्धासन करने से शरीर को कई प्रकार के फायदे होते हैं और यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार करता हैं। जिस की चर्चा नीचे मुजब कि गई हैं।

  • मन एकाग्र और शांत होता है।
  • पाचनक्रिया नियमित होती है।
  • विचार पवित्र और पॉजिटिव आते हैं।
  • वीर्य की रक्षा होती है, और सेक्स पावर बढ़ता हैं।
  • प्राणतत्त्व स्वाभाविकतया ऊर्ध्वगति को प्राप्त होता है।
  • सिद्धासन का अभ्यासी भोग-विलास से बच सकता है।
  • स्वप्नदोष के रोगी को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
  • ७२ हजार नाड़ियों का मल इस आसन के अभ्यास से दूर होता है।
  • सिद्धासन के अभ्यास से शरीर की समस्त नाड़ियों का शुद्धीकरण होता है।
  • जठराग्नि तेज होती है। दिमाग स्थिर बनता है जिससे स्मरणशक्ति बढ़ती है।
  • श्वास के रोग, हृदयरोग , जीर्णज्वर , अजीर्ण, अतिसार, शुक्रदोष आदि दूर होते हैं।
  • मानसिक शक्तियों का विकास होता है। कुण्डलिनी शक्ति जागृत करने के लिए यह आसन प्रथम सोपान है।
  • मंदाग्नि, मरोड़, संग्रहणी , वातविकार , क्षय, दमा, मधुप्रमेह, प्लीहा की वृद्धि आदि अनेक रोगों का प्रशमन होता है।
  • सिद्धासन में बैठकर जो कुछ पढ़ा जाता है वह अच्छी तरह याद रह जाता है. विद्यार्थियों के लिए यह आसन विशेष लाभदायक है।
सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

सिद्धासन जैसा दूसरा आसन नहीं है, केवली कुम्भक के समान प्राणायाम नहीं है, खेचरी मुद्रा के समान अन्य मुद्रा नहीं है और अनाहत नाद जैसा कोई नाद नहीं है।

पद्मासन के अभ्यास से जो रोग दूर होते हैं, वे सिद्धासन के अभ्यास से भी दूर होते हैं और पद्मासन के अभ्यास से जो लाभ होते हैं, वे सिद्धासन के अभ्यास से भी होते हैं । ब्रह्मचर्य पालन में यह आसन विशेषरूप से सहायक होता है ।

योगीजन सिद्धासन के अभ्यास से वीर्य की रक्षा करके प्राणायाम के द्वारा उसको मस्तिष्क की ओर ले जाते हैं, जिससे वीर्य ओज तथा मेधाशक्ति में परिणत होकर दिव्यता का अनुभव कराता है।

आत्मा का ध्यान करनेवाला योगी यदि मिताहारी बनकर बारह वर्ष तक सिद्धासन का अभ्यास करे तो सिद्धि को प्राप्त होता है । सिद्धासन सिद्ध होने के बाद अन्य आसनों का कोई प्रयोजन नहीं रहता । सिद्धासन से केवल या केवली कुम्भक सिद्ध होता है । छः मास में भी केवली कुम्भक सिद्ध हो सकता है और ऐसे सिद्ध योगी के दर्शन-पूजन से पातक नष्ट होते हैं, मनोकामना पूर्ण होती है । सिद्धासन के प्रताप से निर्बीज समाधि सिद्ध हो जाती है। मूलबंध, उड्डीयान बंध और जालंधर बंध अपने-आप होने लगते हैं।

सिद्धासन महापुरुषों का आसन है। सामान्य व्यक्ति हठपूर्वक इसका उपयोग न करे, अन्यथा लाभ के बदले हानि होने की सम्भावना है।

सिद्धासन की विधि और लाभ : Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh

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Conclusion ( निष्कर्ष )

ध्यान दें कि योगासनों को सही ढंग से करने के लिए एक प्रशिक्षित योग गुरु के मार्गदर्शन में अभ्यास करना अच्छा होता है। योग आसनों को धीरे-धीरे सीखें और शरीर की सीमाओं के अनुसार समय बढ़ाते रहें। अपने स्वास्थ्य और शारीरिक समर्थ के अनुसार आसन करें और जब भी आवश्यक हो, उचित सलाह के लिए एक योग गुरु से परामर्श लें।

अगर आप सिद्धासन को पहली बार कर रहे हो तो किसी योग की गुरु या एक्सपर्ट की निगरानी में करें। तो आपको इसके अच्छे लाभ मिल सकते हैं। गलत तरीके से सिद्धासन करने से आपको इसके भयंकर नुकसान हो सकते हैं।

इस लेख में हमने आपको सिद्धासन क्या हैं? सिद्धासन की विधि और लाभ ( Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh ) के बारे में सपूर्ण जानकारी दी हैं।आशा करता हूं आप सिद्धासन की विधि और लाभ ( Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh ) से जुड़ी सभी जानकारियों को अच्छी तरह समझ गए होगे।

हमारा उद्देश्य आपको स्वस्थ और तंदुरस्त रखना हैं। सिद्धासन की विधि और लाभ ( Siddhasana Ki Vidhi Aur Labh ) से जुड़ी जानकारी आपको कैसी लगी हमे कॉमेंट बॉक्स के माध्यम से जरूर बताएं।

लेख को पूरा पढ़ने के लिए आपका दिल से धन्यवाद 🙏

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